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तुम कहाँ हो?

गहरे पानी पैठ
गहरे पानी पैठ
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रश्मियों का रूप धरकर
ढूंढता मन नयन बनकर
तुम कहाँ हो?
तुम कहाँ हो?
तुम बिना हर शै अधूरी
तुम छुओ
इस तरह मन को
जगे मन
मिट जाये दूरी
साधना हो जाये पूरी.
स्वतः उड़े मन
हर्षित हो तन
रसना कहे धन्य यह जीवन.
सब कुछ हल्का हल्का इतना
सुखमय स्वर्गिक सपना जितना.
उजियारो से मिट जाती ज्यों
भ्रम भटकन मज़बूरी
हर मंज़िल की दूरी.
तुम छुओ इस तरह मन को
जगे मन मिट जाये दूरी .
साधना हो जाए पूरी
रश्मियों का रूप धरकर………

भोला नाथ पाल
इटावा

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