गहरे पानी पैठ
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खुल गया आकाश
पंछी !
उड़ो, विहरो पर लगाकर,
साधना अब क्यों अधूरी !
मत कहो के…
अगम है नभ,
तरे कैसे अनत दूरी ?
हे प्रभा के पुंज !
छोडो हदें,
कुछ व्यापक बनो I
मत डरो,
तुम नित्य हो,
साहस करो,
मंज़िल तरो….
छोड़ दो अस्तित्व का भय,
नहीं होता सत्य का छय I
तुम जियो
इस तरह, जैसे,
सत्व होता-
सत्य मैं लय I
सत्य की फहरे पताका,
सत्य का जयघोष हो,
सत्य स्वांशों में रमा हो,
सत्य जीवन कोष हो I
भोला नाथ पाल
70 ए, कृष्णापुरम
सराय दयानत, इटावा-206001
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