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सेतु

गहरे पानी पैठ
गहरे पानी पैठ
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मृदु स्पंदन…
आया, छू गया
अंतस के तार,
झंकार उठी,
मन की सितार,
गूंजने लगी,
अनहद नाद,
शून्यता….
बन गई पहचान
बोध…..
बन गया सेतु,
तुम ही नहीं
मैं भी उतरूंगा,
तुम ही नहीं
मैं भी तरुंगा,
गहरे-
और गहरे,
कि…..
खो जाये होश,
रह जाये
बस…..
तुम्हारी आगोश |

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