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बोध दीप जलाओ ना…

गहरे पानी पैठ
गहरे पानी पैठ
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भेज कर तुमने
किरण का रथ
कहा….
आ जाओ ना ,
नेह किरणों का निमंत्रण
मित्र हे
ठुकराओ ना i
मन नयन ,
जब प्रेमवस
आकर…….
हृदय पट खोलते,
शब्द सुरभित हो
पवन के साथ
बरबस डोलते i
तब जगा देता हृदय
अनुराग के अहसास से
कौन है जो
छू रहा मन
आज इतने प्यार से ?
तुम बताओ…..
वो कहाँ पथ
प्यार का
चलता जहां रथ
नेह से भीगे चराचर
बोध दीप जलाओ ना
भेज कर तुमने…..
जो हृदय के लोक को
आलोक बन कर भर रहा ,
अदृश् अधरों से
मधुर संगीत बन कर झर रहा ,
रीझता यह विश्व सारा
मौन हो
जिसपर सदा,
मोह लीला का समंदर
सृजन ऐसे कर रहा |
तुम बताओ वह कहाँ पथ,
बोध का चलता जहाँ रथ,
ज्ञान में भींगे चराचर,
मुक्ति बोध कराओ ना |
भेज कर तुमने…

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