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माँ की ममता

गहरे पानी पैठ
गहरे पानी पैठ
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मन उदास है, ह्रदय दास है
फिर भी जननी एक आस है,
अगर जन्म लूँ तेरे हित लूँ
वर्ना समझूँ जन्म पाप है |
* * * * * *
माँ अनमनी दीखती क्यों तू
क्यों दिल खोल न बतियाती,
क्या मुझसे विश्वाश हट गया
बात न करती , कतराती |
* * * * * *
माँ तू हँसती ऊपर ऊपर
अंतर मन प्रतिपल रोता,
तेरी दशा देख हे जननी
मेरा मन विचलित होता |
* ** * * * *
माँ तू रोती चुपके चुपके
पी जाती नैनों का नीर,
अंदर का दुःख अंदर रखती
सहती नित्य विषैले तीर |
* * * * * *
कल मैंने मंदिर में देखा
तेरी ममता को रोते,
तू अधीर थी जाग रही थी
पी कर मद प्रहरी सोते |
* * * * *
तेरे रखवाले लगते थे
घात लगाये निस्चर से,
धर्म कर्म में शुन्य दीखते
पाप कर्म में अविचल से |
* * * * *
माँ तेरे हाथों के कंगन
तेरे सर का उज्जवल ताज,
बेच बेच कर ये खा जाते
कुछ भी करते इन्हे न लाज |
* * * * *
धन के खाते इनके बढ़ते
और धर्म के होते शुन्य,
माँ ये तुझको रोज बेचते
रोज आंकते तेरा मूल्य |
* * * * *
तू क्या जाने मेरी जननी
रात समय जब तू सोती,
क्या क्या होता तेरे घर में
निद्रा में जब तू होती |
* * * * *
तब मंदिर बनता वैश्यालय
कामदेव मंदिर के लोग,
सुमुखि अबलाओं का हे माँ
तेरे पुत्र लगाते भोग |
* * * * *
तू भोली है तू क्या जाने
तेरा इनका कैसा मेल,
यह सब बेपैंदी के लोटे
इन्हे लुढ़कने में क्या देर |
* * * * *
माँ ये दम्भी पाखंडी है
देख देख इनके मुख देख,
चुल्लू भर पानी दे दे माँ
डूब मरे मत इनको देख |
* * * * *
तेरी दशा देख हे जननी
मेरा सिर झुक झुक जाता,
सब कुछ करने को दिल करता
पर मर्यादा तोड़ ना पता |
* * * * *
हे भारत माँ हे जग जननी
अब बतला कैसी देरी,
तेरा द्वार छोड़ कर हे माँ
कहाँ लगाऊँ अब फेरी |
* * * * *
देख अरे माँ धर्म मर रहा
सुन ले हे माँ इसकी टेर,
देर बहुत हो चुकी अहो माँ
क्यों करती है अब अंधेर |
* * * * *
काली बन माँ रन चंडी बन
आँख तरेर एक पल देख,
ऐसे दुनियां स्वाहा कर दे
कर दे प्रलय लगे छण एक |
* * * * *
मिट जाये काली करतूतें
हे माँ सच्चाई झूमे,
पावन सुखी शांत हो प्राणी
लहराए तिरंगा नभ छू ले |

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