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मेरी अनुभूतियों का संसार………

गहरे पानी पैठ
गहरे पानी पैठ
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नित नैसर्गिक
स्वंय,
स्वंय से निसृत,
तुम और तुम,
मात्र तुम…
न्यारे और प्यारे,
अनंत ऊर्जा निर्झर,
सुवाषित, स्पंदित, तरंगित
हर्षातिरेक, स्नेहमंडित
एक खुमार,
खुमार का संसार…
* * * *
नाम रूप में
बांधने को आतुर
शब्द …….
जब हो जाते असमर्थ
तुम-
जो हो, जैसा हो
जस का तस,
जब तुम्हे –
नहीं कर पाते व्यक्त,
तब-
गहरे और गहरे
उतरता है मन
समेटने को
तुम्हारे सारे उपहार,
ताकि.
बता संके सबको
देखो देखो
यह है
मेरी अनुभूतियों का संसार,
मेरी स्वांसों का आधार I
तुम,जो……
हर तृप्ति के पीछे खड़े हो
रसना में
संतृप्ति बने हो
दृस्टि से-
सृष्टि में उतरने वाले
जब मैं धन्य हो जाता
तुम्हारी प्रभा में-
नहा नहा जाता
तुम्हारी कृपाओं के
गीत गाता
तब भी-
पार्श्व में खड़े तुम
बार बार समझाते……..
मैं जो हूँ , जैसा हूं,
मुझे वैसा ही अपनाओ,
मेरा बनना है तो,
स्वांसो स्वांस-
मुझे अपना मीत बनाओ,
और………
मैं हो जाता ………..
अपना सब कुछ छोड़कर,
तुम पर समर्पण,
मेरे प्रभु !
मुझे अपनाओ
अपने गले लगाओ |

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