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हकीकत जी रहा है………..

गहरे पानी पैठ
गहरे पानी पैठ
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वह रोज आता,
अपनी हाजिरी दर्ज कराता,
अनकहे ही मन की बातें,
निराश लौट जाता |
वक्त बीतता गया,
दिन महीने सालों,
वह रीतता गया I
महलों की शान में,
बरसों…
चप्पलें घिसता गया,
अब….
तलवे घिस रहा है,
सपनो को छोड़-
हकीकत जी रहा है,
क्योंकि……..
तुमने नहीं देखा-
न पूछा,
कभी, उसका आना,
उसका जाना,
उसका पछताना,
थक हार कर-
उसका बैठ जाना |

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