गहरे पानी पैठ
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समझ नहीं आता,
धर्म और नीति का टकराव |
दोनों सोचते हैं,
मानव हित की बात……
दोनों पोसते हैं,
आदर्श जीवन के जज्बात…….
दोनों हैं अत्यंत,
उदार उद्दात्त,
देते हैं ,लेते हैं,
एक दूसरे के विचार,
फिर भी-
ठोकते हैं,
एक दूसरे पर ताल |
और भिड़ जाते हैं,
बात बात पर,
क्योंकि-
परोक्ष में चलता है,
प्रभुता का व्यापार |
प्रभुता और पद,
तराशते हैं,
नैतिकता का कद,
दो पल का अनुबंध,
करता है,
युगों का प्रबंध |
यह कैसा धर्म ?
कैसा नीति का प्रबंध ?
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