गहरे पानी पैठ
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मैं तो केवल –
तन ही तन था,
मन के जग जाने के पहले i
तू भी तो-
अनजाना ही था
तुझको पा लेने के पहले i
अमृत को –
जाना ही कब था
अमृत चख पाने के पहले i
अंजुली का-
कुछ अर्थ नहीं था
अमृत भर लाने के पहले i
संबंधों के-
सुख भी दुःख थे
आत्मभाव आने के पहले i
सारे शब्द-
सोर लगते थे
अनहद सुन पाने के पहले i
जीवन था-
पर होश नहीं था
बोध जाग जाने के पहले i
स्वांसों का-
कुछ मोल नहीं था
तुममे रम जाने के पहले i
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