गहरे पानी पैठ
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जिसको,
मैं-
देखा करता हूँ,
सृष्टि के,
हर आकर्षण में………
जिसकी,
प्रभा-
रूप बन सजती,
हर सूरत के,
इस उपवन में………..
जिससे,
हृदय-
तरंगित होता,
हलचल होती,
अन्तःमन में…………
जिसको,
मैं-
खोजा करता हूँ,
मन के भीतर,
मन के मन में……….
जिसके,
अगणित-
चित्र बने हैं,
मेरी आँखों के,
दर्पण में……………..
जिसको
मैं-
पाया करता हूँ,
हृदय पुष्प के,
हर अर्पण में…………
वह ही,
खुद-
उपमान रच रहा
अपने मृदुतर,
स्पंदन में |
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