गहरे पानी पैठ
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अमृत बेला ,आती है
सूरज आनें के पहले
सूरज भी अमृत पीता है
सुबह जाग कर पहले i
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रजनी के कलुषित मन को
स्वर्णिम आभा में रंग कर ,
जैसे अनंत भरता है
अम्बर में रंग निरंतर ,
जैसे पाता मन पंछी
उढनें को पंख रुपहले,
अमृत बेला आती है
सूरज आनें के पहले i
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जब जगता शाश्वत मन
धरती लेती अंगड़ाई ,
स्फुरण प्रभा का होता
प्रकृति पाती तरुणाई,
प्रभा पुरुष प्रमुदित हो
जी चाहे कुछ भी कहले ,
अमृत बेला आती है
सूरज आनें के पहले i
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तू ऐसा क्यों ,वो वैसा क्यों
इसकी चिंता छोडो ,
सुख शांति से जियो ,व्यर्थ मत
जग के कान मरोड़ो,
दर्पण तो हर पल कहता है
देखो खुद को पहले,
अमृत बेला आती है
सूरज आनें के पहले i
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