गहरे पानी पैठ
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मुक्त ह्रदय से
मुक्त कंठ में
जब तुमसे बतियाता हूँ मैं ,
तुम कहते हो
भाव विह्वल हो
गीत प्रीत के गाता हूँ मैं i
तेरा जीना मेरा जीना
मेरी गर्दन तेरा सीना ,
एक हुए जब भाव विह्वल हो
हर्ष हर्ष हर्षाता हूँ मैं i
हे मेरे मन मीत बताओ
कैसे गुजरें दिन ये रातें ,
ख्वाबों की बगिया मैं ठहरीं
अरमानों की ढेर बरातें ,
आँख लगी औ मिटीं दूरियां
स्वांस स्वांस इतराता हूँ मैं i
कवि का जीवन
स्वप्न लोक में
जागना जीना उतराना ,
हे अनंत !
तुममें थिर रह कर
प्रभा लोक में रम जाना ,
तुमसा होगा कौन
ये कह कह
क्यों पल पल पागलता हूँ मैं i
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