गहरे पानी पैठ
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खुशी हूँ
मगन हूँ ,
दो कपडे हैं
अन्यथा नग्न हूँ i
रोटी दाल है
भूखा नहीं रहता,
ज्यादा होता
मिल बाँट कर खा लेते
सुख उपजता i
सर ढकने को छाया
बस –
इतनी सी माया |
जब लोग
रात रात सोते ,
स्वप्नों मैं
अरमानो के बीज बोते |
स्वाभाव सिद्ध सा
मन
एक ही धुन छेड़ता ,
हर तट
हर शिखर को भेदता,
मन ही मन-
बतियाता ,
स्वतंत्रता स्वर्ग से श्रेष्ट है
इसकी रक्षा हो |
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