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देश को समय के हाथों नहीं छोड़ा जा सकता , कुछ संभलना होगा…..

गहरे पानी पैठ
गहरे पानी पैठ
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मन करता
रोज का भारत
जो रोज वासी हो रहा है ,
अपने उदर में
अपने आप को
भर रहा है ,
रोज शाम
इसका हाल लिखूं ,
क्या खोया क्या पाया
जाँचू परखू
जज्बात लिखूं i
हृदय पटल
लूट, हिंसा,अपहरण, बलात्कार –
से भर जाता
मन की कोमलता
मिट जाती,
लेखनी रूक जाती i
माथा पकड़कर
बैठ जाता ,,
होश आता-
तो साहस जुटाता ……….
कुछ करना होगा
देश को
समय के हाथों
नहीं छोड़ा जा सकता
कुछ संभलना होगा…..

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