गहरे पानी पैठ
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राष्ट्र गान के वर्तमान स्वरुप को ही जस का तस स्वीकारना उचित होगा या सुधार या बदलाव ? तुम्हें क्या अच्छा लगता है ग्लानि बोध को सहते जाना या ऐसा उपाय करना कि अपयश का दाग मिटे | यदि सहते जाने में तुम्हारी हाँ है तो तुम पर मुझे तरस आता है, ऐसा तरस कि तुम्हें कभी भी मांफ न किया जाए I तुम्हारी हाँ के पक्ष में जुटाए गए सारे साक्ष्यों को इस लिए न सुना जाये कि तुम्हारी सोच ही गलत है | मैं तो राष्ट्र गान के विकल्प का भी पक्षधर हूँ |
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दसों दिशायें करती हैं नित , जिसके यश की गाथा
हिन्दू मुस्लिम सिख सभी का झुकता जिसको माथा
उन्नत हिमगिरि से ललाट के सागर पांव पखारे
सूर्योदय से अस्तांचल तक दिनकर रूप निखारे
गाये तव यश गाथा
भ्रातृ भाव फैलाने वाले हे जग मंगल दाता
जय हे जय हे जय हे !
जय जय जय जय हे !
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