गहरे पानी पैठ
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रे मन –
क्यों तू भय में रहता ?
व्यर्थ
द्वैत के –
दह में दहता |
बिना स्वार्थ के ,
बिना अहं के ,
बिना भ्रान्ति के ,
बिना वहम के ,
बन निमित्त –
साक्षी की सत्ता
तुझको तो
बहते जाना है ,
सत्य बोध में
रम जाना है ,
रे मन
क्यों तू क्रंदन करता ?
व्यर्थ द्वैत का
बंदन करता |
चढ़ती कला
पूर्णता का पथ ,
बिना अहं के
हांक बोध रथ ,
शाश्वत की
अविरल धरा में ,
त्याग मोह मद
मिल जाना है ,
सत्य बोध में
रम जाना है |
रे मन
तू है किससे डरता ?
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