गहरे पानी पैठ
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बहुत उडूं-,
मन में हसरत थी,
तुमने डोर छोड़ दी लेकिन ,
मैं थी मगन –
तुम्हारे नभ में,
तुमने नज़र फेर ली लेकिन ….
मेरे ख्वावों की –
दुनिया में,
तेरा था विस्तार समाया ,
प्रमुदित होकर-
जब में उड़ती,
बनजाती थी तेरी माया,
सब कहते थे –
उड़ो और तुम,
तुमने आस तोड़ दी लेकिन …..
सारी श्रृष्टि –
तुम्हारी ही है,
मैं तुम का फिर नाटक कैसा,
तुम समर्थ थे-
कुछ भी करते,
किया न तुमनें कुछ भी ऐसा ,
मै पगली –
तुम से ही उलझी
तुम न सुनते कुछ भी लेकिन …
पाकर विस्तृत –
ह्रदय तुम्हारा
मन में एक हसरत उग आती,
तुम बन जाते –
केंद्र अनकहे
मै बनजाती परिधि तुम्हारी ,
पर न पसीजे –
तिल भर तुम तो
मैं प्रसन्न हूँ फिर भी लेकिन ….
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