गहरे पानी पैठ
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माँ बेटे की हर नादानी
सबनें देखी सबनें जानी
प्रजा-तंत्र की अजब कहानी
बरसा कम्बल भींगा पानी I
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सोच विचार हुए बेमतलब
मतलब सिर्फ बयान से ,
चिंतन जूझ रहा भाड़े में
नंग बड़े भगवान से i
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प्रजा -तंत्र की हत्या करके
धरना धरनी मगन मगर
समझ रहे हैं नाम हो गया
नाम हुआ बदनाम मगर I
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उल्टा चोर चला कोतवाली
हाथ में खर्रा बगल दुनाली
प्रजा-तंत्र की रंगत लाली
दिन के रहते हो गई काली I
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