गहरे पानी पैठ
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नहीं ,
शायद नहीं ,
उड़ सकता मैं
तुम जितना ऊँचा I
न वितान
न विमान
फिर भी ……….
आशाएं छूतीं आसमान ,
खेता हूँ
बन कर पतवार
तेरी मौजों को ,
उड़ता हूँ
बन कर पवन
किन्तु …
नहीं नाप पाता
तेरी गहराई
तेरी ऊंचाई ,
तू कितना महान !
एक आश
हजार कयास
क्या है तू
नहीं जान पाता
सन्यास i
कैसे मान लूँ
बरसे गा तू
स्वयं ,
बन कर कृपा ,
करेगा मुझे संतुष्ट !
जीवन है
तो चाहिए –
तेरा प्रकाश
तेरा विभास i
अब ,
तू ही कर
कुछ प्रयास !
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