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ख़्वाबों का भारत ………….

गहरे पानी पैठ
गहरे पानी पैठ
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वहाँ –
आने वाले भारत में,
कर्मों की –
शुचिता होगी I
हर चेहरे पर , चरित्र की
मुदिता होगी,
श्रेष्ठता, सम्पन्नता, सम्पूर्णता से
सजा होगा,
हरेक जीवन,
जैसे मधुबन I
इच्छाएं होंगीं,
किन्तु,
प्रकृति दासी,
जी हजुर की भाषा,
प्रकृति की,
कृतज्ञता भरी अभिलाषा I
वैभव के –
अकूत भण्डारण,
कि –
इच्छा मात्रम अविद्या I
प्राकर्तिक साज,
कि स्वर ही आवाज,
स्वर ऐसे,
कि कानों में –
मधुरस घोलें……
दृश्य ऐसे –
कि अपने आप बोलें I
फल ही भोजन,
भूख प्यास स्वाद ,
सबको –
एक साथ तुष्ट करते,
तत्वों से भरपूर,
कि काया को,
पुष्ट करते I
भाषा –
शुद्ध हिंदी,
भाव को इंगित करता,
हरेक शब्द…
न थकान,न कड़ा श्रम
न बुद्धि का बोझ I
प्रभुता नहीं,
प्रेम का सम्बन्ध,
प्रजा ही संतान I
घर नहीं –
महल……
रत्न जड़ित,
हीरे ही दीप,
सूर्य की,
सतरंगी किरणों की,
अठखेलियां…….
प्रकाश व्यवस्था का
प्रकृतिजन्य साधन I
ऋतुएँ –
समतापीय,सुखद
और विमान I
आवश्यक्तानुकूल छोटे बड़े
व्यक्तिगत ,परिवार के
आवाज, गति अनुकूल
विघ्नों से परे
विनिमय –
सत्कार की शोभा,
स्वर्णिम भारत –
कुछ ऐसा होगा I

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