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स्वर्ग धरा पर लाएंगे हम ………..

गहरे पानी पैठ
गहरे पानी पैठ
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अपने को आत्मा समझो,
मन , बुद्धि, संस्कार सहित,
मन,
सृजन का कारक,
बुद्धि ,
मन का मार्गदर्शक,
संस्कार ,
अतीत के –
सुख दुःख के अनुभव,
हर्ष, विषाद, लिप्सा, अवसाद………
लोग कहते हैं,
मन को छटवीं इन्द्रिय
किन्तु मैं देखता हूँ,
जीवन तो है,
मात्र मन की अभिव्यक्ति…….
मन के किये की –
पुनरावृत्ति .
यह जो-
मैं उठता हूँ,
मन पहले ही,
उठ चुका होता है……..
यह जो –
मैं सोता हूँ,
मन पहले ही,
सो चुका होता है………
यह जो –
तुमसे प्रेम,
उससे घृणा,
“मैं दुहराता हूँ,”
कर तो मन
पहले ही चुका होता है
जीवन तो अनुकरण है-
मन के किये का I
यह जो –
लोग कह गए हैं,
“मन के हारे हार है,”
या……….
“मन न रंगाये-
रंगाये जोगी कपडा ”
मन को समझने वाले लोग थे………
मन से अलग बैठ,
मन को देख सकने ,
निर्देशित करने वाले,
मन को चलाने वाले लोग थे………
वह जनक,
विदेह
अष्टावक्र के एक आदेश पर,
“मन मुझे दे दे ”
काठ सा स्थिर हो गया……..
शायद ……….
मन को देख सकने,
समझ सकने,
निर्देशित करने शासित करने में
सफल हो गया था…….
सारा विश्व –
मन का अनुगमन करता है,
सबकी दुनिया,
परिभ्रमण करती है,
मन का .
और ……….
विश्व नियंता
अपनी बाँसुरी की स्वर लहरी से,
तरंगित कर रहा है,
विश्व मन को ……….
स्वर्ग धरा पर-
लाएंगे हम … …

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