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सोचो, शायद निकले कोई बहाना…

गहरे पानी पैठ
गहरे पानी पैठ
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कुछ संग्रह करो
उसने कहा
बुढ़ापे के लिए
हारी बीमारी के लिए
पैसा होगा , सब साथ देंगे,
सेवा होगी .
पास बैठा मैं
कुछ गुन रहा था,
अंदर ही अंदर
न जाने क्यों
क्या धुन रहा था,
क्या पैसे वाले –
कष्ट नहीं पाते ?
बिना कष्ट ही;
शरीर छोड़ जाते ?
और…..
मैं और अंदर घुसा
कष्ट का इलाज क्या है,
हम भाग रहे हैं
जंगल से गांव की ओर,
गांव से घर की ओर,
घर से तहखाने की ओर,
तहखाने में कोने की ओर,
और अंत में –
आँखे बंद, हाथ उठाये
समर्पण .
गरीब कहता है
मैं मरा,
अमीर कहता
मुझे बचाओ,
दर्शक बनी दुनिया
सोचती रह जाती
क्या करूँ ?
अकेलेपन से
जीवन भर लड़े हैं,
भागे हैं भीड़ की ओर
अंत में ….
अकेले जाना है,
सबने माना है,
कष्ट ..
साधनो से , सुरक्षा से
क्या कम होगा ?
अंतिम पीड़ा तो
सबकी समान है,
सबको सहना है,
कौन कहता है
मैं बिना कष्ट मर पाया,
बिना कष्ट
जीवन सागर
खुशी खुशी तर पाया,
सोचो !
शायद ,निकले कोई बहाना,
संभव हो सके
अंतिम यात्रा पर
खुशी खुशी निकल पाना l

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