गहरे पानी पैठ
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तू ,
जो भी है
मेरे दुःख हरेगा
मैं लाख बुरा सही
तू भला करेगा l
यही वह बात थी
मैं तुझसे नहीं डरा
बुराइयों से लदा,
फिर भी –
तुझपे अकड़ा I
और तू …
कभी मुस्कुराया
करुणावस,
कभी –
आंशूं बहाया i
सारी हदें पार कर
एक बार फिर,
जब,
तू मेरे द्वार आया
इतने दिन से दिखाई नहीं दिए-
कह, तूने मुझे बुलाया
और मैं –
झल्ला गया
तेरी इस हमदर्दी पर
लगभग चिल्ला पड़ा,
मुझे बचाओ-
इस आफत से i
नख सिख
आतंक,हिंसा के
दोजख में धसा मैं
न रह सकता,न सह सकता
हृदय को झुलसाती
हमदर्दी की
यह आग !
तुम्ही बताओ
वह नाविक क्या करे
औरों के हाथों –
जिसकी पतवार ?
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