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परिवर्तन का आह्वान ……….

गहरे पानी पैठ
गहरे पानी पैठ
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टूटती सांसों ने
निशा से कहा
देखली न
तूनें !
मेरे पतन की –
पराकाष्ठा I
बद-दामिनी झेलते-
तेरी ममता की,
शुभ्रता –
मेरे अंतस की
कितनी न कराही !
देखली न
तूनें
मेरे पतन की
पराकाष्ठा !
काली रात ,
जुगनुओं का क्रम ,
बहुत सह चुके
तुम्हारे –
शुक्ल पक्ष का भ्रम ,
उगने दो अब
सत्य का सूरज
सत्ता अंधियारों की
अब –
मरे या भाड़ में जाय
होनेदो परिवर्तन I
रे कलुष !
तेरे नहुष
बहुत कर चुके
भ्रम का तांडव
गानें दे अब
प्रभा को-
परिवर्तन गीत
मनानें दे अब
प्राची को –
स्वागत रीत I
देख !
सजाकर पुष्प थाल
प्राची –
देनें को पैगाम
चल पड़ी है करनें
परिवर्तन का आह्वान ………

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