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“अपना घर ही” जिसका धंधा ……

गहरे पानी पैठ
गहरे पानी पैठ
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सागर मंथन क्यों करते हो
चुल्लू का पानी जब गन्दा ,
सबकी टाई क्यों कसते हो
ढीला करलो खुद का फंदा !
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तुमनें जो तस्बीर बनाई
कोई सूरत निखर न पायी ,
फिर भी सबके गले पड़ा क्यों
तेरी रुस्वाई का फंदा ?
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हद हो गई ,रिझाता ऐसे
जनम जनम का नाता जैसे ,
तेरे हल , तेरी मुठिया का
क्यों गुलाम हो सबका कन्धा ?
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जानें क्यों ऐसा होता है
जब देखो गरीब रोता है ,
तुम्हीं बताओ छोटे मालिक
क्या गरीब का दामन गंदा ?
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जिस प्रकाश में तुम बहते हो
जिसको तुम सूरज कहते हो ,
उस सूरज को हम क्यों झेलें
“अपना घर ही” जिसका धंधा ?

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