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तो फिर सुखद प्राण बन जाओ ………..

गहरे पानी पैठ
गहरे पानी पैठ
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जब सूरज अमृत लाता है
अमर हुआ जो पी पाता है,
हर प्राणी संतृप्त हो गया
तो सूरज भी जी जाता है I
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एक किरण काफी होती है
एक भाग्य चमकाने को ,
कुछ उत्तल दर्पण बैठे हैं
सारी किरणें पी जानें को I
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माधव देता ,ऊधव लेता
ऐसी कोई बात नहीं ,
आँख आँख को किरण मिल गई
तो समझो अवतार सही I
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सूरज क्या जानें क्या छाया
छाया तो प्राणी की माया ,
उत्तल समतल,समतल उत्तल
क्यों हैं? समय समझ न पाया I
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जब स्वासों में ही रमना है
संग हवाओं के चलना है ,
तो फिर सुखद प्राण बन जाओ
उठो देव ! कुछ तो हर्षाओ !!
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