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साँच कहें तो मारन धावै , झूठे जग पतियाना …………

गहरे पानी पैठ
गहरे पानी पैठ
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उत्तर प्रदेश का चुनाव मुख्य रूप से तीन पार्टियों के बीच है. बीजेपी जो अपने विकास कार्यों के लिए वैश्विक आतंकवाद, नक्सलवाद तथा कालेधन के प्रति साहस पूर्ण क़दमों के लिए सर्जिकल स्ट्राइक के लिए लोगों के दिलों दिमाग पर इस प्रकार छा गयी है कि विपक्षी, पक्षी सभी मिल कर जनता का मोहभंग करना चाहते हैं और जनता है कि टस से मस होने को तैयार नहीं. जनता तो इस आशा में कि अभी सफाई और होगी मोदी के पाले में जाकर बैठ गई है . लोगों को मोदी सरकार का स्वछता अभियान, एल पी जी गैस वाली उज्जवला योजना, घर घर शौचालय योजना, ग्राम सड़क योजना जो कि यू पी में सौतेले भाई का दर्जा पाए हैं बहुत भायी हैं. जनता किसान फसल बीमा योजना, सौर ऊर्जा योजना आदि के प्रति जागरूक नहीं हो पाई, क्योंकि उन योजनाओं को प्रदेश स्तर पर इस लिए प्रचारित प्रसारित नहीं किया गया की कहीं मोदी प्रदेश में न आ जाय अस्तु…. एड़ी छोटी का जोर लगा कर या कहें कि नख सिख प्रयास कर के हताश निराश पार्टियां जनता का ध्यान भंग करना चाहती हैं किन्तु जनता है कि कहती है कि शोर मत मचाओ.
प्रदेश सरकार का कहना है कि हमने केंद्र से अधिक विकास किया है हमनें क्या नहीं किया चौड़ी चौड़ी सड़कें बनवाई. इटावा सेंचरी क्षेत्र लायन सफारी बनवाई अब हाथी हिरन चीतल आ गए हैं. लायन सफारी को अब चिड़िया घर का दर्ज प्राप्त हो चुका है. लखनऊ में मेट्रो चालू है, जितनी पटरी बनती जा रही है वही डिबबे आगे बढ़ते जायेंगे. अधिकतर योजनाएं अभी जनता के कानों में नहीं पहुची हैं. जो प्रचार तंत्र की नाकामी है. जनता जान जाएगी अभी चुनाव की लिस्ट आउट होते ही सबको मालूम हो जायेगा .
जनता का मन टटोलने का जब मन हो तो पूछो कि भैया इस बार क्या विचार है ? किसे ला रहे हो? जैसे जैसे जनता का दिल खुलता है पत्ते भी खुलते जाते है जनता कहती है कि ….ये जो ग्राम ,ब्लॉक तथा उच्च क्रम में जन प्रतिनिधि हैं पद पाते ही न जानें कौन सी भांग पी लेते हैं कि कुछ भी सुनते ही नहीं . जब जनता अपनें काम के लिए पैरों पड़ती तब और तन जाते ,जब कि नेतृत्व कहता – अपना प्रदेश उत्तम प्रदेश. पिछला चुनाव जीतने के बाद प्रदेश मैं चार वर्ष तक काम चलाऊ काम के अतिरिक्त और कुछ नहीं हुआ. पिछले एक वर्ष से जब पार्टी मुखिया ने बार बार यह चिंता जताई कि कानून व्यवस्था पर नियंत्रण नहीं है तो दिखावे के लिए हलचल की गई. कुछ के ट्रांसफर हुए कुछ के नट बोल्ट कसे गए लेकिन परिणाम जस का तस. जनता को भ्रमित करने का पूरा प्रयास हुआ. जनता जानती है कि नेतृत्व जो चाहता है वो यथार्थ की भूमि पर क्यों नहीं घटित हो पाता क्योंकि नीचे के प्रतिनिधि अपने को छोड़कर और किसी को देखते ही नहीं.जब चुनाव आता है तो गलियां खड़ंजे आर सी सी बिछने शुरू हो जाते और मतदान की पूर्व संध्या पर तो द्वारे बैठना मुश्किल हो जाता. जो भी वोट मांगने आता पैरों पर गिरता आता. ठगी सी जनता को यही लगता कि यह पैर नहीं छू रहे जूते मार रहे हैं. सो उठकर घर मैं घुस जाती.
सच्चाई बयां करते भय लगता है, चुनाव जैसे पावन पर्व पर प्रत्याशियों से निवेदन है कि माननीय बनते ही जनता से कट जाने के राजनैतिक वंशानुक्रम का शिकार न हो. राजनीति का मात्र एक फार्मूला है. पहला हित जनता का. यह भी जान ले कि जनता में किसान, मजदूर, गरीब, वृद्ध, असहाय, बेरोजगार, साधन बिहीन दिव्यांग आदि आते है. शेष सब तो अधिकारी कर्मचारी प्रतिनिधि, शासक प्रशासक हैं.
कोई नहीं जानता कोन आएगा, कोन जायेगा. जनता के दिल से जब अपना दिल मिलाता हूँ तो अपनी आँखें भी जनता की आँखों से स्वर्णिम भोर का उजाला देखने का ख्बवाब देखनें लगती है. किरण बन पाना तो अपना भाग्य नहीं, फिर भी एक इच्छा तो रहती ही है……. सर्वे भवन्तु सुखिना सर्वे संतु निरामया, सर्वे भद्राणि पस्चन्तु माँ कश्चित् दुखवा भवेत्.

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