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हे प्रभा के प्रहरी ! ……….

गहरे पानी पैठ
गहरे पानी पैठ
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अँधेरे आएंगे
जोर आजमाएंगे
परखेंगे –
तुम्हारी सामर्थ
कलुष भी चाहता है
इतना सा –
अंतिम हर्ष .
.
यह ,
जो अँधेरा है ,
छल प्रपंचों का-
डेरा है
करेगा यह
अंतिम स्वांस तक
अट्टहास,
प्रथम किरण आने तक
हर किरण का
उपहास .
इसलिए
हर पड़ाव
विश्राम का
आमंत्रण नहीं
सुस्त होनें
और,
सुस्ताने का –
निमंत्रण नहीं
.
प्रभा पर्व की
हर-
पूर्व संध्या
अधिक घनी,
अधिक काली होती है
प्रलोभनों से भरी,
हर इकाई को
फुसलाने वाली होती है .
ऐसे में –
हे प्रभा के प्रहरी !
प्रथम किरण आने तक
अँधेरा छट जानें तक
तू सजग रह
हर इकाई से कह
सावधान !
तुच्छ प्रलोभन से बच
बच गए , तो
प्रभा –
अमृत उपहार है
सृष्टि को दिया
तेरा –
सर्वोपरि प्यार है . .

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