गहरे पानी पैठ
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और ….
समरसता को छलने
फिर –
एक जुट हुए
स्वार्थ के प्रेत,
अल्पता, रिक्तता
करनें चले
समग्रता पर
अधिकार,
दुरभि संधियां
खेलनें लगीं
गलबहियां का –
ब्यापार .
.
बुद्ध ,
फिर हुए
अपनी छाया से,
छाया की –
कलुषित माया से-
भयभीत,
भिक्षा पात्र
अपमानित हुआ,
झेलने लगा,
फिर ,
नंगी तलबार की-
प्रीत .
कब तक?
आखिर कब तक?
झेलें गे बुद्ध
अंतस की
यातना का
यह भीषण युद्ध ?
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