गहरे पानी पैठ
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इतना कह कर “ह्रदय तुम्हारा”
हरते क्यों तुम जीवन सारा,
हे अंतस के देव द्वैत को हरो
ह्रदय की मेटो हलचल I
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हमने तो इतना चाहा था
भ्रम टूटे पथ अवगाहा था,
अगर कुछ नहीं तो आकुल मन
पागल है? करता कोलाहल ?
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घर से आँगन से गलियारा
फ़ैल रहा तेरा उजियारा ,
जैसे सुरभि पवन के झोंके
स्वासों को करते हैं चंचल I
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