गहरे पानी पैठ
- 124 Posts
- 267 Comments
क्यों कहते हो
है सर्वत्र
गरल ही गरल ,
सब कुछ
उलझा उलझा
नहीं कुछ सरल .
क्यों होते हो उदास
त्याग कर –
कर्म पथ
क्यों लें सन्यास !
जीवन-
क्यों ढोंयें,
क्यों न जियें ?
गरल को
अमृत बनायें,
क्यों न पियें ?
नहीं ,
नहीं रह सकता
हमेसा –
अंधेरों का साम्राज्य
अंधेरे-
कैसे करेंगे
प्रभा पर राज्य
देखो न !
रात टूटी
हुआ सुखद सवेरा .
उठो ,
खोलो द्धार
होनें दो –
किरणों का बसेरा .
उत्सव मनाओ
कि-
अब चलना है
सुचिता के पथ पर
उत्साहित-
उड़ान भरना है .
*****************
Read Comments